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Showing posts from 2012

An Incomplete Post...

Humans tend to forget that before being from any religion, they need to essentially be "HUMAN". There is no religion for animals, is there any? Religion is "set of daily practices" which was aimed at peaceful, healthy and prosperous life with an ideal, livable society with tendency to help each other. Let's stop getting fooled from all political parties who ask votes based on caste, reservation bills, minority quota, state, language and all other dividing factors. Those who are with development of nation, majorly committed to security of food and education to all below poverty levels.  Saw a video of respected Atal Ji quoting late Rajeev Gandhi, if Rs. 1 is released for aid of poor, only 19 Paise reaches to them, when asked why he told laughingly "Jab rupaiya chalta hai, to ghista hai". Well, remain aware of what's happening in country, and what reforms are needed, have a opinion, your "I do not care" attitude 'll n

कैसे??

रोशनी से भरा शहर, रफ़्तार में टिन के डिब्बे, ठहरी सी ज़िन्दगी किसी की, जेब में नहीं पैसे... उनकी बेबसी, लोगों की बनावटी "माथे की सिकन", मैं सोच रहा हूँ भरे-पेट, उनका गुजारा होगा कैसे?? - कृष्णा

अकेला

 मैं था अकेला,                                     Listen to this song... चल रहा था यूँ ही, पा सकूँगा तुम्हे, नहीं था यकीन, मगर कुछ हुआ, पूरी हुयी दुआ, अब ना कोई दूरी, मेरी बाहों में आ। दर्द भुला, होश भुला, याद रखूँ भी क्यूँ ? तुम हो जब करीब, मैं क्यूँ ना... जियूँ? ख्वाब था जो मेरा, प्यार था जो मेरा, अब मेरा हो गया, अब फिकर भी हो क्या? मैं था अकेला, ... पा सकूँगा तुम्हें, ... - कृष्णा पाण्डेय Copyright 2012. All Rights Reserved.

Shri Bhaskaracharya Ji

श्री भास्कराचार्य जी हमारे प्राचीन भारत के सुप्रशिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलविज्ञानी रहे हैं। उनके जीवन तथा कार्य के बारे में अधिक जानने हेतु शोध करने पर मुझे अपने भारतीय होने पर अत्यंत गर्व हुआ। पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव से हम अपने बौधिक विरासत से कितने दूर हो चुके है, इसका अनुभव भी हुआ। मेरे पिताजी को उनके विद्यालय में सवा (1.25) का पहाड़ा (tables) सिखाया जाता था, आज हम हर छोटे हिसाब के लिए कैलकुलेटर का प्रयोग करते हैं। मेरे पिताजी को मुझसे अच्छी भौतिकी (physics) आती है, जब की मेरी शिक्षा बचपन से अंगेजी विद्यालय में हुयी। आज हमारे पास अतुल ज्ञान का भंडार है, हर कार्य के लिए यन्त्र (machine) है, परन्तु क्या हमारे पास जीवन का ज्ञान है? एक सवाल हमारी शिक्षा-पद्धति पर?

तलाश

वजह जानने की कोशिश में, ज़िन्दगी से ही दूर हूँ, जाने कहाँ गुम हूँ मैं, खुद की तलाश है मुझे... - कृष्णा

ज़द्दो-ज़हद

कुछ नया करने की ज़द्दो-ज़हद, दिमाग परेशान, मंजिल बहुत दूर है, आराम की ख्वाहिश क्या करूँ? चाहत तो है किसी की सुकून भरी बाहों की, पर इस कामयाबी के जूनून, का क्या करूँ ? -कृष्णा

कुछ और

अब मकसद कुछ और है, अब मंजिल कुछ और है, जुनूँ की ख्वाहिश है बस अब, हौंसला कुछ और है। - कृष्णा

कब तक

जोश - समंदर की लहरें, आता है लौट जाता है, ये ठहरे तो कैसे ठहरे, तू ही बता ज़िन्दगी, तमन्ना है छू लूँ आसमाँ, मैं भी , किस डोर से बंधा हूँ, तू ही बता ज़िन्दगी। दिल तो बेकरार है, चाहता सपनों का दीदार, कितना करूँ इन्तजार उसका, तू ही बता ज़िन्दगी। नहीं फिक्र खुद की, ना ज़माने की, करूँ ख्याल उसका कब तक, तू ही बता ज़िन्दगी।  - कृष्णा पाण्डेय

शाम

काश वक़्त रुक पाता, और, ये दिन ढलने का दर्द, मेरी तमन्नाओं की तरह ये, लूटते बहुत है। शाम ने सुना ये और कहा, आराम कर ऐ दोस्त, सुबह फिर उड़ान भरने को, परिंदे बहुत है। -- कृष्णा पाण्डेय

मजबूरी

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कुछ अजीब सा वक़्त है ये, कुछ अजीब सी ख़ामोशी है, गरीब से इंसान की, बढ़ गयी क्यूँ दूरी है? सब मशगुल है अपनी ख़ुशी, अपने रंग में, दूसरों के घर चूल्हे जले ना, क्यूँ जाने क्या मजबूरी है? नहीं है मेरे पास कोई जादू की छड़ी, ना नुस्खा है कोई, ना किसी फकीर की ताबीज, ना चढ़ाया चादर कही, ना ही फुर्सत अपने रोजगार और आराम से, तुम भी क्यूँ सोचो, क्यूँ जाने क्या मजबूरी है? फिर क्या हल निकले इस मसले का? वो भी खुश है, दो घूँट अपनी हलक से निचे कर... कृष्णा पाण्डेय

Install NS 2.35 from source packages on Fedora 16

I assume that the Fedora Installation you have on your system have minimal packages and installed with GNOME desktop. Though it's optional, you can check for existing installation of package, by typing " rpm -qa | grep <pkg_name> ", in our case, i.e. Perl. If not present, I prefer installing Perl binaries from Fedora repository only. To do that (as you are reading my blog here, I assume your system is connected to Internet), type below command:                          [root@fedora32 ~]# yum install perl This will install Perl-5.14.2-198 . fc16.i686 package and other related Perl packages as per requirement. Also install various dependencies which will come in course of compiling and "configure/make" of required source packages by typing below commands. [root@fedora32 ~]# yum install gcc gcc-g++ [root@fedora32 ~]# yum install libX11-devel [root@fedora32 ~]# yum groupinstall "X Software Development" [root@fedora32 ~]# yum install  q

तनहा

जब तनहा होता हूँ, तनहा नहीं होता, जब सब साथ होते है, तनहा होता हूँ...

शिद्दत

ना रही वो शिद्दत गम की, इक मुद्दत बाद ये इल्म हुआ, हमने तो ना चाहा था ऐसा हो मगर, जो हुआ अच्छा हुआ...

शगल

इंसानियत की बात करना, बड़े लोगों की शगल है बस, अगर नियत सही होती, तो आज ये मंजर ना होता...

दायरा

देख रहा था मैं, एकटक, टंकी मे बंद मछलियों को, रंग-बिरंगी, सुन्दर, पर शायद निरर्थक भ्रमण करती, जाने किस धुन, किस लय मे तरंगित है, काश उन्हें एहसास होता अपने सीमित दायरे की. शायद अभी तक है दबी, कहीं अन्तः मे, उसके अरमान वापस समंदर मे जाने की, आज़ादी के लिये कितना भी टकराए शीशे से, पर उसके नसीब मे शायद वो वक़्त नहीं. शायद खुश है वो इस बात से की, दरिया मे होते तो टिकते कब तक, उन पर इंसान ने किया है उपकार, उन्हें जीवित छोड़ के अब तक. फिल्मों की तरह हर कहानी का, एक निश्चित अंत नहीं होता, जीवन अगर इतनी सरल होती, तो कभी कोई संघर्ष नहीं होता. नहीं तय कब ख़त्म होगा, ये सिलसिला गुलामी का, अपने से बलवान की कमजोर पर जुल्म और मनमानी, शायद कुछ परेशानियों का हल सिर्फ मृत्यु ही है बस, चाहे उसे शहादत कह लो, आत्महत्या या क़ुरबानी. -- कृष्ण पाण्डेय

आरज़ू

आज फिर एक दिन गुजर गया, बस यूँ ही ख्यालों में, कुछ करने की चाहत तो थी, पर वजह कहीं गुम था. वजह जानने की कशमकश से बेकरार हुआ जब, हमने पाया दिल के हाथो दिमाग मजबूर था... आरज़ू थी दिल में हमारे भी ऊँची उड़ान की, मगर सारी ख्वाहिशें गुम थी और थे अपने साये, शायद इंतजार है फिर से किसी हमसफ़र का, जिसके साथ मंजिल का मजा राह में ही आये... सुना है उम्मीद पे दुनिया पे कायम है, हम भी जिये जा रहे है यूँ ही, बस तलाश है फिर उस नजर की, जिसमे मेरा चेहरा नजर आये... -- कृष्णा पाण्डेय

यादें

क्या है ये यादें ? एक सफ़र - ख्यालों मे ढूँढना किसी को, जो अब करीब नहीं, या एक एहसास जो यकीन दिलाये, तुम आज भी दिल के करीब हो. है ये तुम्हारे साथ बिताये पल महसूस करने का एक ज़रिया , या दो पल का वहम जिससे दिल को सुकून मिलता हो. है  ये  गुजर  चुके  वक़्त  में  कभी  साथ  होने  की  ख़ुशी , या  फिर  भविष्य मे कभी साथ ना हो पाने का गम? तनहाई  में इंसान के साथी, या महफ़िल में गुफ्तगू के सामान, या ये है पेट भरने के बाद करने वाली, इंसानो की कोई शगल. या ये है पाप का प्रायश्चित, क्यूँ की ये अच्छा वक़्त गुजरने के बाद ही आती है. है ये कोई इस दुनिया से परे एक दूसरा जहान, जहाँ हम ज़माने की मर्ज़ी के बिना मिलते है. या ये है कोई एहसास, जो हमें एक दुसरे के दिल में जिंदा रखती है, सुखद हो तो मुस्कान वरना आँसू छोड़ जाती है. या ये इंसान के कभी हार न मानने के जिद का परिणाम है. ये आती क्यूँ  है? ताकि हम इस बात का फैसला कर सके की कौन सही था, कौन गलत, जब की इस बात से क्या फर्क पड़ता है, क्यूँ की हम जुदा है अब. कभी लगता है ये ऐसी चीज़ है जिसका कोई वजूद नहीं, फिर

ख़ामोशी

ख़ामोशी -- जैसे कोई सुना हुआ एक शब्द. पर इसे सुनना जैसे, शायद सब के बस की बात नहीं, लब सिले हुए होते है, मगर दिल में थमा होता है एक तूफ़ान, जो इंतज़ार करता है किसी अपने का, जिसे सुना सके अपने दिल का हाल. मन में चलते रहते है कई सवाल, जिसका जवाब पता होके भी कोई फर्क नहीं, स्मृति लुप्त है कही अतीत की परछाईओं में कोई नया लम्हा ढूंढ़ पाने को. आस-पास बैठे लोगों से भी दूर-दूर तक कोई रिश्ता ना लगता हो, और नजर से दूर किसी को याद करने से फुर्सत ना हो. ऐसे किसी पल में जब आँखें नम होने को आये, और लेना चाहो किसी का नाम तुम, पर वो लब्ज़ हलक से निकल ना पाये, उस शांत समंदर जैसे कुछ पलों के एहसास को ख़ामोशी कहते है... -- कृष्णा पाण्डेय

अधूरी मुस्कान

लबों पे आ के ठहरी सी है एक अधूरी मुस्कान, जो किसी के चेहरे को देख कर पका करती थी, आज भी तमन्ना है दिल की वही खुल के हसने की, पर उसके बाहों का घेरा अब कहाँ जिसमे जन्नत बसती थी. हमें उम्मीद थी उनसे की वो करेगी अपना वादा पूरा, पर वो भी औरों की तरह शायद ज़माने से मजबूर थी. तनहाई में उसे याद करके सोचता हूँ उन हसीन लम्हों को, क्या वक़्त वापस लाएगी वो लम्हा जिसकी हम दोनों को तलाश थी. इसी ख्याल में था की, थम-के बहती हवाओं ने फुसफुसाया कानों में कुछ, फिर से ऐसा लगा कही किसी ने अपने ख्यालों में पुकारा हो मुझे अभी. हमने फिर उम्मीद भरी निगाहों से ताका आसमान की तरफ, काश कोई तारा टूट जाए हमारे दिल की तरह कहीं. -- कृष्ण पाण्डेय

मन और ह्रदय -- मेरी प्रथम हिंदी कविता

एक अधम मन और एक निष्पाप सा ह्रदय, इच्छाओं के दावानल में, एक नयी इच्छा का उदय | मन पुनः आरम्भ करता है, नविन स्वप्नों का सृजन, जो यथार्थ नहीं है अब तक, उसकी सार्थकता में हर्षित मन | कहीं काल-पीड़ित स्तंभों पर ठहरी, अतीत की अधूरी कल्पना, फिर घुमड़ते है शंका के बादल ह्रदय में, कर के सुक्ष्म विवेचना | कहीं कोई जीवन भर श्रापित, क्षण भर मन के उन्माद से, कहीं ह्रदय भी तृप्त है मिथ्या, दो क्षण के उल्लास में | मन एक झरने सा उच्छशृंखल, ह्रदय शांत सरोवर सा, विचार झरने की चंचल धारा, उद्वेग सरोवर में कंकड़ सा | ह्रदय को अभिलाषा है, सच्चे प्रेम की, कर्त्तव्य की, धर्म की, सम्मान की, शांत संतुष्ट जीवन की | मन इच्छुक है हर क्षण सुख का, शरीर बिना विकार के, फल बिना कर्म के और सम्पदा सारे संसार की || बहुत बुद्धि दौड़ा कर हमने जाना अब ये सार है, बिना सोच-विचार के कर्म करना अपराध है | शरीर एक नौका जैसी है, ह्रदय, मन दो पतवार है, जीवन एक समुद्र जैसी है, हमें सकुशल जाना उस पार है || -- कृष्ण पाण्डेय

हाल-ऐ-दिल

ये मन पतंग सा, बिन डोर कहीं उड़ चला, मुझे छोड़ दो मेरे ख्वाबों में, मुझे जगाओ ना. अभी भी है किसी का इन्तेजार मुझे, मुझे तनहा ही रहने दो, मेरे पास आओ ना. ऐसा नहीं की औरों को मेरी फिकर नहीं, चारो तरफ है लोग अपना रुमाल लिये, पर मैं इतना कमजोर भी नहीं, की, खुद का ख्याल ना रख सकूँ, बस मुझे रुलाओ ना. तमन्ना नहीं है मेरी मायूस रहने की, ऐसा भी नहीं की, सुनता नहीं किसी का कहना, लेकिन मेरी भी अपनी कुछ मर्ज़ी है, खुदी है, मैं अपनी ही धुन में हूँ, मुझे बहकाओ ना. हजारों पड़े है राहों में, आँखों में अश्क लिये, सैकड़ों कहानियां है अधूरी, प्यार की, मेरी भी है एक उसमे शामिल, कितने मिलते है हर-एक दुसरे से ये गिनाओ ना. कहते है, वक़्त है मरहम हर घाव का, पर कुछ घाव वक़्त ने ही दिये होते है, हमें मालूम है अपने दिल का इलाज़, मुफ्त में सलाह देकर हमें बहलाओ ना. हमें गम है उनसे ना मिल पाने का, और हमें नहीं है समझ ज़माने की, फिर से मिल सकूँ उससे इक बार, कोई ऐसी तरकीब सुझाओ ना. -- कृष्णा पाण्डेय

एक इच्छा

शायद जब से है जीवन इस धरा पे, वायु इस नभ में, पानी हर जलाशय में, अग्नि हर एक पेट में, तब से पल रही है हर चर-अचर के अंतः में, कभी तरंगित, कभी दबी-कुचली, कभी त्रिशंकु सी, एक इच्छा. अब इच्छा है तो पूर्ण ही होगी, ऐसा कोई साक्ष्य नहीं, अगर दृढ-संकल्प हो मन में, तो कुछ भी फिर असाध्य नहीं. कुछ देव-कृपा से फलित, कुछ दुर्भाग्य बन पलकों पे सजी. और कभी ऐसा हुआ घटित की लगे जीवन ले रही है कोई परीक्षा. मानव को है इच्छा आजीवन भोग-विलास की, पक्षी को इस असीमित नभ में और ऊँची उड़ान की, सब लगे है अपनी धुन में, बेहिचक, बेझिझक, बेपरवाह, अब धर्मं, मर्यादा, गरिमा, सहिष्णुता, ये सब बातें हैं इतिहास की. कभी सोचता हूँ क्या यही मानव की प्रकृति है, इच्छा और कर्म, जो हर-समय व्यस्त है सिर्फ स्वहित के व्यवसाय में, कभी देखता हूँ अपने आस-पास ये वृक्ष, नदियाँ, चन्द्रमा, और सूर्य, जो दृढ है अपने धर्मं पर, हर कण के कल्याण में. फिर सोचता हूँ, क्या मनुष्य हो सकता है इच्छाओं से रहित, क्यूँ की मैंने ये भी सुना है की ये सृष्टि भी है प्रभु की एक इच्छा. -- कृष्णा पाण्डेय

खोया हुआ प्यार

ऐसा नहीं की आज ये पहली बार हुआ है, की ज़ेहन में फिर उनका ज़िक्र हुआ है, फिर महसूस हुयी है आंसुओं की गर्माहट, आज फिर उनके इंतजार में दिन ढलने को है. फिर सहमा है दिल, कैसे कटेगी सारी रात तन्हाई में, वापस कानो को इंतजार दरवाजे पे किसी आहट का. डुबते रहे हम उनके ख्यालों में, अजीब सी सुकून में, दर्द भी था, ख़ुशी भी थी, उनके कभी हमारे होने का. फिर सुबह होगी, फिर दफ्तर जाने की मज़बूरी, फिर वही ख़ुशी का नकाब चेहरे पे, झूठलाते हुए लोगों की सवाल-भरी निगाहों को, जैसे सब कुछ सही ही हो इस ज़िन्दगी में. सच ही तो है, दो हाथ, दो पैर, अच्छी कद-काठी, सुन्दर चेहरा, माँ-बाप का साया, ढेर सारे यार, पर क्या करूँ इस दिल की फितरत का,  जिसे उसी की तलाश होती है - वो खोया हुआ प्यार. -- कृष्णा पाण्डेय

परेशानी

वो ज़ज्बा ही कही गुम है, आज़ादी का, सब खुश-फहमी में जिये जाते है... दो पल के सुकूनो आराम के लिये, लोगों के ईमान बदल जाते है... कहते है जंग के लिये जरुरत होती है हथियारों की, लोग चुभती बातों से ही बेहाल हुए जाते है... मौके-परस्तों की इस दुनिया में, किसका ऐतबार करे, अपने वादे रखने को, मर्द की ज़ुबान कम पड़ जाते है... चेहरों पे सिकन है वक़्त का, मज़बूरी की, कैसे जोड़ ले और दो-चार पाई, सब इस जुगत में है, उम्र गुजर गयी लोगों की इसी फिराक में, एक हम है, जो फ़ोकट में परेशान हुए जाते है... :) -- कृष्णा पाण्डेय

इंसान और खुदाई - मेरी द्वितीय हिंदी कविता

इक तरफ शोर है, इक तरफ तनहाई है, चाहूँ या ना चाहूँ, फिर तेरी धुंधली सी याद चली आयी है, तेरा ना हो पाने के एहसास ने, जब दिल को बेकरार किया, नजरों ने तब भीड़ में फिर, इक जानी सी शक्ल पायी है| किससे कहूँ, किसको सुनाऊं, तेरे ख्यालों ने कितनी रातें जगाई है, या बयाँ कर दूँ उन लब्जों को, जो तेरे अधखुले लबों की ख़ामोशी ने सुनाई है, ढूंढ़ता रहता हूँ अपने बिस्तर के सिलवटों में कहीं, अनजान बने, इक वही प्यारी मुस्कान, जो तुमसे छिपाकर तकिये के निचे दबाई है | वादों पर एतबार था दोनों को ही, फिर वक़्त ये किस मोड़ पे ले आयी है, नहीं सब कुछ इंसान के बस में, शायद इसी सच के इल्म का नाम खुदाई है || -- कृष्ण पाण्डेय

भाग्य

भाग्य,  पढ़ा था कभी, मैंने कहीं की, होता है सब का एक निश्चित, धरा का, देश का, मानव और हर प्राणी का, सुदूर कही गगन में बैठे विधाता ने, रचा है कोई सूत्र, जिससे बंधी है समय की ये असीमित धारा. हर कल्पित और कल्पना से परे, हर घटना, प्रकृति, ऋतुएँ, मुहुर्त, हर क्षण के घटित होने का एक विधान है, दृष्टि से परे, अंतरिक्ष में अपनी धुरी, लय में परिक्रमा करते ग्रह, तट के मर्यादा में समुद्र, नदियाँ, अचर है पर्वत, बँधे उसी सूत्र में. उस सूत्र की रचना के दो कारण है - पाप और पुण्य, जिसमे भेद कर कर्म करे मनुष्य अपनी बुद्धि से, और करे फल का अर्पण श्री-चरणों में, जिससे जुड़ा है अतीत, वर्तमान और भविष्य. हो सकता है नास्तिको को ये असत्य लगे, कैसे कोई अदृश्य शक्ति का अंकुश है हमारे जीवन में, पर जब चलता नहीं कोई पराक्रम भुजाओं का, सब कहते है यही भाग्य में था, ह्रदय के संतोष के लिये. -- कृष्णा पाण्डेय

"gnome-screenshot" (No such file or directory)"

Linux O/S: RHEL Server release 6.2 (Santiago) Kernel Version: 2.6.32-220.7.1.el6.x86_64 Problem:  When you try to take Print Screen it displays following error message "There was an error running gnome-screenshot: Failed to execute child process "gnome-screenshot" (No such file or directory)" Solution: You need to install package gnome-utils, by running command " yum -y install gnome-utils ". This will also install gnome-utils-libs package for dependencies.

Blog No. "VOID" or "Zero" or "शून्य"

Let the zero be identity of intellect of Indians from ancient times. May this blog be able to fill the void in Cyber Space. With the wish to help others with my mistakes/learning/experiments/observations/knowledge, Here I post my Blog No. Zero which will serve as starting point to never ending journey. ॐ द्यो शांतिरन्तरिक्ष: शांति: पृथ्वी शांतिराप: शांति: रोषधय: शांति:| वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा शांतिब्रह्म शांति: सर्व: शांति: शांतिरेव शांति: सा मा शांतिरेधि || ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ|| || श्री आदिगणेशाय नमः ||