शाम

काश वक़्त रुक पाता, और, ये दिन ढलने का दर्द,
मेरी तमन्नाओं की तरह ये, लूटते बहुत है।

शाम ने सुना ये और कहा, आराम कर ऐ दोस्त,
सुबह फिर उड़ान भरने को, परिंदे बहुत है।
-- कृष्णा पाण्डेय

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