भाग्य

भाग्य, 
पढ़ा था कभी, मैंने कहीं की, होता है सब का एक निश्चित,
धरा का, देश का, मानव और हर प्राणी का,
सुदूर कही गगन में बैठे विधाता ने, रचा है कोई सूत्र,
जिससे बंधी है समय की ये असीमित धारा.

हर कल्पित और कल्पना से परे, हर घटना,
प्रकृति, ऋतुएँ, मुहुर्त, हर क्षण के घटित होने का एक विधान है,
दृष्टि से परे, अंतरिक्ष में अपनी धुरी, लय में परिक्रमा करते ग्रह,
तट के मर्यादा में समुद्र, नदियाँ, अचर है पर्वत, बँधे उसी सूत्र में.

उस सूत्र की रचना के दो कारण है - पाप और पुण्य,
जिसमे भेद कर कर्म करे मनुष्य अपनी बुद्धि से,
और करे फल का अर्पण श्री-चरणों में,
जिससे जुड़ा है अतीत, वर्तमान और भविष्य.

हो सकता है नास्तिको को ये असत्य लगे,
कैसे कोई अदृश्य शक्ति का अंकुश है हमारे जीवन में,
पर जब चलता नहीं कोई पराक्रम भुजाओं का,
सब कहते है यही भाग्य में था, ह्रदय के संतोष के लिये.
-- कृष्णा पाण्डेय

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