मन और ह्रदय -- मेरी प्रथम हिंदी कविता

एक अधम मन और एक निष्पाप सा ह्रदय,
इच्छाओं के दावानल में, एक नयी इच्छा का उदय |

मन पुनः आरम्भ करता है, नविन स्वप्नों का सृजन,
जो यथार्थ नहीं है अब तक, उसकी सार्थकता में हर्षित मन |

कहीं काल-पीड़ित स्तंभों पर ठहरी, अतीत की अधूरी कल्पना,
फिर घुमड़ते है शंका के बादल ह्रदय में, कर के सुक्ष्म विवेचना |

कहीं कोई जीवन भर श्रापित, क्षण भर मन के उन्माद से,
कहीं ह्रदय भी तृप्त है मिथ्या, दो क्षण के उल्लास में |

मन एक झरने सा उच्छशृंखल, ह्रदय शांत सरोवर सा,
विचार झरने की चंचल धारा, उद्वेग सरोवर में कंकड़ सा |

ह्रदय को अभिलाषा है, सच्चे प्रेम की, कर्त्तव्य की,
धर्म की, सम्मान की, शांत संतुष्ट जीवन की |
मन इच्छुक है हर क्षण सुख का, शरीर बिना विकार के,
फल बिना कर्म के और सम्पदा सारे संसार की ||

बहुत बुद्धि दौड़ा कर हमने जाना अब ये सार है,
बिना सोच-विचार के कर्म करना अपराध है |
शरीर एक नौका जैसी है, ह्रदय, मन दो पतवार है,
जीवन एक समुद्र जैसी है, हमें सकुशल जाना उस पार है ||

-- कृष्ण पाण्डेय

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