Posts

Showing posts from September, 2012

मजबूरी

Image
कुछ अजीब सा वक़्त है ये, कुछ अजीब सी ख़ामोशी है, गरीब से इंसान की, बढ़ गयी क्यूँ दूरी है? सब मशगुल है अपनी ख़ुशी, अपने रंग में, दूसरों के घर चूल्हे जले ना, क्यूँ जाने क्या मजबूरी है? नहीं है मेरे पास कोई जादू की छड़ी, ना नुस्खा है कोई, ना किसी फकीर की ताबीज, ना चढ़ाया चादर कही, ना ही फुर्सत अपने रोजगार और आराम से, तुम भी क्यूँ सोचो, क्यूँ जाने क्या मजबूरी है? फिर क्या हल निकले इस मसले का? वो भी खुश है, दो घूँट अपनी हलक से निचे कर... कृष्णा पाण्डेय