हाल-ऐ-दिल


ये मन पतंग सा, बिन डोर कहीं उड़ चला,
मुझे छोड़ दो मेरे ख्वाबों में, मुझे जगाओ ना.
अभी भी है किसी का इन्तेजार मुझे,
मुझे तनहा ही रहने दो, मेरे पास आओ ना.

ऐसा नहीं की औरों को मेरी फिकर नहीं,
चारो तरफ है लोग अपना रुमाल लिये,
पर मैं इतना कमजोर भी नहीं, की,
खुद का ख्याल ना रख सकूँ, बस मुझे रुलाओ ना.

तमन्ना नहीं है मेरी मायूस रहने की,
ऐसा भी नहीं की, सुनता नहीं किसी का कहना,
लेकिन मेरी भी अपनी कुछ मर्ज़ी है, खुदी है,
मैं अपनी ही धुन में हूँ, मुझे बहकाओ ना.

हजारों पड़े है राहों में, आँखों में अश्क लिये,
सैकड़ों कहानियां है अधूरी, प्यार की,
मेरी भी है एक उसमे शामिल,
कितने मिलते है हर-एक दुसरे से ये गिनाओ ना.

कहते है, वक़्त है मरहम हर घाव का,
पर कुछ घाव वक़्त ने ही दिये होते है,
हमें मालूम है अपने दिल का इलाज़,
मुफ्त में सलाह देकर हमें बहलाओ ना.

हमें गम है उनसे ना मिल पाने का,
और हमें नहीं है समझ ज़माने की,
फिर से मिल सकूँ उससे इक बार,
कोई ऐसी तरकीब सुझाओ ना.
--
कृष्णा पाण्डेय

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