कैसे??


रोशनी से भरा शहर, रफ़्तार में टिन के डिब्बे,
ठहरी सी ज़िन्दगी किसी की, जेब में नहीं पैसे...
उनकी बेबसी, लोगों की बनावटी "माथे की सिकन",
मैं सोच रहा हूँ भरे-पेट, उनका गुजारा होगा कैसे?? - कृष्णा

Comments

Popular posts from this blog

"gnome-screenshot" (No such file or directory)"

An Incomplete Post...

इंसान और खुदाई - मेरी द्वितीय हिंदी कविता