अधूरी मुस्कान


लबों पे आ के ठहरी सी है एक अधूरी मुस्कान,
जो किसी के चेहरे को देख कर पका करती थी,
आज भी तमन्ना है दिल की वही खुल के हसने की,
पर उसके बाहों का घेरा अब कहाँ जिसमे जन्नत बसती थी.

हमें उम्मीद थी उनसे की वो करेगी अपना वादा पूरा,
पर वो भी औरों की तरह शायद ज़माने से मजबूर थी.
तनहाई में उसे याद करके सोचता हूँ उन हसीन लम्हों को,
क्या वक़्त वापस लाएगी वो लम्हा जिसकी हम दोनों को तलाश थी.

इसी ख्याल में था की, थम-के बहती हवाओं ने फुसफुसाया कानों में कुछ,
फिर से ऐसा लगा कही किसी ने अपने ख्यालों में पुकारा हो मुझे अभी.
हमने फिर उम्मीद भरी निगाहों से ताका आसमान की तरफ,
काश कोई तारा टूट जाए हमारे दिल की तरह कहीं.

-- कृष्ण पाण्डेय

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