आरज़ू

आज फिर एक दिन गुजर गया, बस यूँ ही ख्यालों में,
कुछ करने की चाहत तो थी, पर वजह कहीं गुम था.
वजह जानने की कशमकश से बेकरार हुआ जब,
हमने पाया दिल के हाथो दिमाग मजबूर था...

आरज़ू थी दिल में हमारे भी ऊँची उड़ान की,
मगर सारी ख्वाहिशें गुम थी और थे अपने साये,
शायद इंतजार है फिर से किसी हमसफ़र का,
जिसके साथ मंजिल का मजा राह में ही आये...

सुना है उम्मीद पे दुनिया पे कायम है,
हम भी जिये जा रहे है यूँ ही,
बस तलाश है फिर उस नजर की,
जिसमे मेरा चेहरा नजर आये...
-- कृष्णा पाण्डेय

Comments

Popular posts from this blog

"gnome-screenshot" (No such file or directory)"

Install NS 2.35 from source packages on Fedora 16

An Incomplete Post...